मेरा मुझ में कुछ नहीं, जो कुछ है सो तेरा

कर्नल (सेवानिवृत) हरशरण सिंह तूर, जुलाई 2007 English
गुरु ग्रंथ साहिब का यह तुख मैं अपने गुरुजी को समर्पित करता हूँ जिन्होंने हमें अपनी शरण में लिया और हमारे जीवन को परिवर्तित कर दिया। गुरुजी से मिलने से पूर्व हमारे जीवन की कोई दिशा नहीं थी - जीवन में जैसी परिस्थितियाँ उत्पन्न होती थीं वैसे ही उनका सामना करते रहते थे। हम ईश्वर की सत्यता को समझने में असमर्थ थे। 25 वर्ष पूर्व मेरा बेटा अपनी श्रवण शक्ति खो चुका था। कोई औषधि, संत या तांत्रिक हमारी सहायता नहीं कर पा रहे थे। फिर, जैसे कहा जाता है, जब शिष्य तैयार होता है, गुरु प्रकट होता है - और ऐसा ही हुआ। अचानक एक सम्बन्धी के कहने पर हम गुरुजी के पास पहुँचे।

श्रवण शक्ति लौट आयी

जब पहली बार हमने गुरुजी के दर्शन किये, उन्होंने मेरी पत्नी को हमारे सावधि बचत खाते की संख्या, मेरी पत्नी की साड़ियों की संख्या (मेरी पत्नी को अच्छी दक्षिण भारतीय साड़ियाँ पसंद हैं), उसके पास सब स्वर्ण ज़ेवरों का वज़न और मेरे बिके हुए घर की सही राशि भी बता दी। अंतिम बात मैंने पत्नी को नहीं बतायी थी क्योंकि मैं महिलाओं की हीरे में रुचि के बारे में जानता था। प्रसंग छोटा था पर मेरा सोचना स्वाभाविक ही था।

फिर सत्संगों को सुनने के बाद मेरी उनसे मिलने की जिज्ञासा जागृत हो गयी। मैंने उनको अपने पुत्र की श्रवण शक्ति के बारे में बताया तो उन्होंने तुरन्त उसके कान में प्रतिदिन बादाम रोगन की एक बूँद डालने को कहा।

दस दिन के उपरान्त मेरे बेटे के कान में अत्यंत पीड़ा हुई। जब मैंने गुरुजी से उसका उल्लेख किया तो वह बोले कि कल्याण हो गया, 20 प्रतिशत ठीक हो गया और अब धीरे-धीरे पूर्णतः ठीक हो जायेगा। उन्होंने मेरे पुत्र की श्रवण शक्ति का परीक्षण भी करवाने को कहा। मेरी प्रसन्नता की सीमा नहीं रही जब मेरे पुत्र ने अपने कानों से उपकरण निकालते हुए कहा कि शोर बहुत अधिक है। गुरु कृपा से वह पच्चीस वर्ष के बाद सुन पा रहा था। मुझे आभास हुआ कि मेरी खोज कितनी अधूरी थी। इधर गुरुजी के चरणों में उनकी दया, मेहर, कृपा और अपने सतगुरु, रब, स्वामी, सब मिल गये थे।

चाय की पत्तियों में संदेश

गुरुजी के पास आने पर हमें अनेक सत्संग सुनने को मिले। भक्त अपने निजी अनुभव सुनाते थे और बताते थे कि उन्होंने गुरुजी को विभिन्न परिस्थितियों और विभिन्न रूपों में देखा है। मेरी पत्नी में उसी प्रकार से गुरुजी के आशीष प्राप्त करने की इच्छा हुई - यह नहीं पता था कि वह इतनी शीघ्र पूर्ण हो जाएगी।

नव वर्ष आ रहा था और उसकी पूर्व संध्या पर हमारा बड़े मंदिर जाने का कार्यक्रम था। किन्तु मित्रों के बार-बार कहने पर हमने उनके साथ वह समय व्यतीत करने का कार्यक्रम बना लिया। गुरुजी के मन में कुछ और ही विचार था।

प्रतिदिन की भांति मेरी पत्नी चाय बना रही थी जब उसने पानी में चाय की पत्ती डाली तो उसने सर्प के फन का आकार ले लिया। यह सोच कर कि यह संयोग था उन्होंने चाय की पत्तियों को बार-बार पानी में डुबोया, तो हर बार वही आकृति बन जाती। यह देखकर वह भयभीत हो गयी और उसने मुझे बुलाया। देख कर मैंने बताया कि गुरुजी बड़े मंदिर आने का संदेश दे रहे हैं पर मात्र इतना ही नहीं था; वास्तव में यह परोक्ष रूप से गुरुजी की कृपा थी। गुरुजी ने मेरी पत्नी को वहाँ पर नृत्य कार्यक्रम में भाग लेने को कहा और उसका पच्चीस वर्ष से चला आ रहा पीठ दर्द समाप्त हो गया।

नास्तिक को पाठ मिला

कुछ वर्ष पूर्व मैं अपने एक मित्र के साथ अपने खेत पर जा रहा था। मेरे मित्र नास्तिक थे जिन्हें शबद, कीर्तन, गुरु चर्चा इत्यादि धार्मिक कर्म व्यर्थ लगते थे। उन्होंने कहा कि चमत्कार होने के बाद ही वह गुरुजी पर विश्वास करेंगे।

इतना कहने की देर थी कि पीछे से एक ट्रक ने कार पर ज़ोर से टक्कर मारी। कार तो पूरी क्षतिग्रस्त हो गयी। दुर्घटना इतनी भयंकर थी कि हम दोनों उछल कर बाहर धरती पर आ गिरे और अर्धचेतन हो गये। होश आने पर हमने देखा कि दोनों में से किसी को चोट नहीं आयी थी। उठने पर मेरे मित्र स्तब्ध थे। मैंने उनको कहा कि आप इसी चमत्कार की प्रतीक्षा में थे। यदि हम गुरुजी के बारे में बात नहीं कर रहे होते तो किसी भी प्रकार से राष्ट्रीय राजमार्ग पर ऐसी दुर्घटना में चोट लगे बिना बच नहीं पाते। उनकी आँखों में आँसू आ गये और उन्होंने हाथ उठा कर गुरुजी को धन्यवाद किया। जब मैंने गुरुजी से इस बात का उल्लेख किया तो वह बोले कि हमें कोई हानि नहीं हो सकती थी क्योंकि वह हम पर दृष्टि बनाये हुए थे।

मुझे एक प्रसंग याद आ रहा है। मनुष्य को ईश्वर का सबसे बड़ा उपहार संतान है। यही मेरी भांजी के साथ हुआ। चिकित्सकों के सब प्रयास निष्फल हो गए थे। उसे सात वर्ष से संतान नहीं हुई थी और इसकी अब आशा भी नहीं थी। जब वह भारत आयी और उसने गुरुजी के दर्शन किये तो उसके या किसी और के कुछ कहने से पूर्व ही उन्होंने उसे बेटी से संबोधित कर के कहा कि उसका काम अक्टूबर में हो जायेगा। हम में से किसी को भी गुरुजी के कथन का तात्पर्य समझ नहीं आया। वह मई का महीना था। कुछ दिनों बाद वह अमरीका वापस चली गयी। गुरुकृपा से वह अक्टूबर में गर्भवती हुई और चिकित्सक दंग रह गये। उसने एक पुत्र को जन्म दिया। गुरुजी द्वारा दिया गया हर बालक होनहार होने के साथ अपने माता-पिता के लिये एक अनमोल रत्न होता है।

हृदय रोग के लिये समोसा

एक बार मेरी नाड़ी की गति 180 हो गयी। चिकित्सक ने तुरन्त शल्य क्रिया का परामर्श दिया। मैंने यह करवाने से पूर्व गुरुजी को बताना उचित समझा। मैंने चिकित्सक से मिल कर शल्य क्रिया का समय भी नियुक्त कर लिया। संध्या को मैं गुरुजी के पास गया। उन्हें मेरी समस्या का पहले से ही ज्ञान था। उन्होंने संदेश भेज कर कहा कि सब ठीक हो जाएगा। उस दिन गुरुजी ने प्रसाद बाँटा। एक अनुयायी समोसे लाये थे। उन्होंने पाँच समोसे अपनी मुट्ठी में मसल कर दिये और मुझे खाने को कहा। चूंकि तला हुआ खाना मेरे लिये विष समान था मैं चकित था। गुरुजी में आस्था होने के कारण मैंने उन्हें खाया और अपने स्थान पर आकर बैठ गया। उन्होंने मुझे फिर बुलाया और दो समोसे और दिये। मेरा पेट भरा हुआ था किन्तु मैंने किसी प्रकार से वह भी खा लिये। उनके चमत्कार से मेरी नाड़ी घट कर 70 हो गयी। अगले दिन चिकित्सकों ने अपना निर्णय दे दिया कि मुझे शल्य क्रिया की कोई आवश्यकता नहीं है। मेरे लिये गुरुजी की महानता और प्रेम ऐसा है।

रोग परिवर्तन

गुरुजी ने मेरे भांजे के रोग को परिवर्तित कर एक और अदभुत और निराला चमत्कार किया। मेरी बहन का पुत्र छुट्टी पर दिल्ली आया था और पिछले कुछ दिनों से वह खांसी और ज्वर से पीड़ित था। मेरी बहन रूबी, जो स्वंय चिकित्सिका है, ने उसे कुछ औषधियाँ दीं थी। जब उसका रोग समाप्त होने को नहीं आया तो मेरी बहन ने उसके कुछ परीक्षण करवाये। परिणामों से पता लगा कि वह अधिश्वेत रक्तता (रक्त कैंसर) से पीड़ित है। केवल एक चिकित्सक ने अंतिम परिणामों तक प्रतीक्षा करने को कहा। मेरी बहन तो अत्यंत चिंतित हो गयी और उसने गुरुजी से अपने पुत्र को बचाने की विनती की।

इस बीच मैं दिल्ली आया और जब मैंने गुरुजी के दर्शन किये तो उन्होंने मुझ से रूबी के बारे में पूछा। मुझे इसका संदर्भ समझ नहीं आया तो मैंने उत्तर दिया वह ठीक होगी। बाद में मैंने उसको फोन किया तो उसने कहा कि अगले दिन वह गुरुजी के यहाँ चलेगी। गुरुजी के यहाँ जाते हुए उसने पूरी बात बतायी और कैसे उसने गुरुजी से प्रार्थना की थी। केवल अंतिम परिणाम से पता चला कि उसे रक्त रोग नहीं अपितु शरीर के गिल्टी की समस्या थी। जब हम गुरुजी के चरण स्पर्श कर रहे थे तो उन्होंने रूबी को बताया कि उन्होंने उसके पुत्र का रोग परिवर्तित कर दिया है। क्योंकि किसी को इस बारे में ज्ञान नहीं था हम चकित रह गये। ऐसे हैं हमारे अपने गुरु जो सदा हमारी समस्याएँ, कष्ट समाप्त कर देते हैं। उनके बारे में सोचते ही वह प्रकट हो जाते हैं।

सब्ज़ी बेचने वाले को दृष्टि दान

मेरे एक घनिष्ठ मित्र ने चंडीगढ़ में एक भूखंड खरीदा था पर उसके बाद उन्होंने पाया कि उसके नीचे जल नहीं है। जब उन्होंने इस समस्या का उल्लेख गुरुजी से किया तो उन्होंने भूखंड के एक कोने पर 120 फीट तक खोदने को कहा। उन्होंने यह भी कहा कि यदि जल बेचा गया तो वह सूख जाएगा। उन्होंने गुरुजी के निर्देशों का पालन किया और वहाँ से जल प्रवाहित होने लगा। भूजल के प्रवाह का मार्ग 100 वर्ष बाद बदल गया था। गुरुजी स्वयं ईश्वर हैं, क्या इसके लिये किसी और प्रमाण की आवश्यकता है?

गुरुजी श्रद्धा, विश्वास और समर्पण से आये हुए प्रत्येक व्यक्ति की सहायता करने को सदा तत्पर हैं। चंडीगढ़ के सैक्टर 22 में एक गरीब सब्ज़ी वाला था जिसे दो आकृतियाँ दिखायी देती थीं। चिकित्सकों के अनुसार उसके मस्तिष्क में ट्यूमर था जिससे उसको दृष्टि दोष हो गया था। उसकी शल्य क्रिया हुई पर छः माह बाद उसी रोग की पुनरावृत्ति हो गयी। उसकी दुबारा शल्य क्रिया हुई। ट्यूमर असाध्य था और वह तीन माह के लिये अचेतन अवस्था में चला गया। होश आने पर चिकित्सकों ने कहा कि वह और कुछ करने में असमर्थ हैं। उसकी माँ उसे घर ले आई। उसने गुरुजी के बारे में सुना तो उनसे अपने पुत्र को ठीक करने के लिये विनती की। गुरुजी ने उसे 10 मूंगफली सूर्यास्त से पहले जल में भिगो कर सूर्योदय से पूर्व उसकी गिरी खाकर उसके छिलके आँखों पर कुछ देर रखने को कहा। यह दस दिन तक करना था। उसकी दृष्टि ठीक हो गयी, असाध्यता समाप्त हो गयी और वह अब भी स्वस्थ सानंद है। यह गुरुकृपा है।

मैं गुरुजी के चमत्कारों के बारे में घंटों तक लिख सकता हूँ और घंटों तक उनके गुणगान कर सकता हूँ क्योंकि सदा मुस्कुराते हुए प्रभु ने मेरे, मेरे परिवार और पूरी संगत को एक अभेद्य रक्षा कवच का आश्रय दिया हुआ है। यदि किसी पृथ्वी पर कहीं स्वर्ग है तो वह केवल यहाँ है, यहाँ है और यहीं है।

कर्नल (सेवानिवृत) हरशरण सिंह तूर, पंचकुला

जुलाई 2007