परमात्मा - हमारे बीच में

एक भक्त, जुलाई 2007 English
एक समय था जब मंदिर, तीर्थस्थल, मूर्तिपूजा, रीति रिवाज और ज्योतिष, शुभ-अशुभ लक्षण आदि सब बातें अत्यंत महत्त्वपूर्ण लगती थीं। किन्तु गुरुजी से मिलने के बाद यह सब अर्थहीन हो गया है।

अपने अनुभवों का वर्णन करने से पूर्व, मैं सबको बताना चाहती हूँ कि गुरुजी के यहाँ होने से हम सब कितने अनुग्रहित हैं। गुरुजी कोई जादूगर, पुरोहित या स्वामी नहीं हैं। वह तो साक्षात् परमेश्वर हैं जो हमारे बीच में ही बैठकर हमारे जीवन को सरल और मधुर बना रहे हैं। मेरे अनुभव इसी विश्वास और आस्था को सुदृढ़ कर रहे हैं।

भक्त के रूप में, उनसे मिलने के पहले दिन ही गुरुजी में मेरी श्रद्धा जागृत हो गयी थी। उनके आशीर्वाद से ही नवम्बर 2000 में मेरा विवाह हुआ। इसके के कुछ दिन बाद ही गुरुजी मुझसे कहने लगे कि वह मुझे पुत्र देंगे।

गुरुजी की इस पुनरोक्ति, "इक मुंडा लै ले", पर मेरे पति और मैंने कभी अधिक ध्यान नहीं दिया। किन्तु नवम्बर 2000 से जुलाई 2003 तक वह यही दोहराते रहे।

7 जुलाई को, गुरुजी के जन्मदिवस के पावन अवसर पर, बड़े मंदिर में विशाल आयोजन था, जहाँ पर प्रातः 3:30 बजे तक हम सबने उनके दैवीय सान्निध्य का आनंद लिया। इसी समय गुरुजी ने मुझे बुलाया और कहा कि उन्होंने मुझे और मेरे पति को आशीष दिया है। हमने उनसे अनुमति ली और चल पड़े - पुनः इस बात पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया।

एक सप्ताह के पश्चात्, 13 जुलाई 2003 को गुरु पूर्णिमा के अवसर पर, मैं अपनी सास के साथ गुरुजी के दर्शन के लिए गयी थी। गुरुजी कभी किसी से कोई गोपनीयता नहीं रखते, वह प्रत्येक से ऐसे बात करते हैं कि आसपास के लोग पूरा वार्तालाप सुन सकते हैं। परन्तु उस दिन जब मैंने उनसे आज्ञा लेने के लिए उनके चरण स्पर्श किये, उन्होंने मुझे पास आने का इशारा किया और धीमे से बोले कि मैं गर्भवती हूँ पर यह बात किसी को न बताऊँ।

किन्तु मैंने इस कथन की अवहेलना की। मैंने यह समाचार अपने पति को दिया। उन्होंने इसे अनसुना कर दिया और बोले कि मैं गुरुजी पर कुछ अधिक ही विश्वास करती हूँ। तत्पश्चात् गर्भपरीक्षण का निर्णय आने तक मैंने प्रतीक्षा की। 1 अगस्त को मेरे गर्भवती होने का परिणाम आया और गुरुजी की बात सत्य सिद्ध हुई।

विचारणीय है कि मनुष्य होने के कारण हम अपना संयम खो बैठते हैं और स्वयं अपनी नजरों में गिर जाते हैं। गुरुजी से कुछ आशा कर तुरन्त उसकी पूर्ति होने की आकांक्षा करते हैं। परन्तु मेरी स्थिति देखिये। तीन लम्बे वर्षों तक गुरुजी मुझे संतान सुख का आशीष दोहराते रहे। इस बीच एक बार भी मैंने यह प्रश्न नहीं किया, न ही यह बात कभी मन में उभरी कि इतने लम्बे अंतराल तक, उनकी पुनरोक्ति के बावजूद यह क्यों नहीं हो रहा है? हम केवल रुकावट देख सकते हैं; गुरुजी तो उस रुकावट का समाधान निकालते हैं। वह जानते हैं कि फल प्राप्ति के लिए कब उचित समय है और उसे कैसे पूर्ण किया जाये।

किसी भी पुरोहित, सन्यासी या जादूगर में जीवनदान देने की क्षमता नहीं है। किन्तु गुरुजी ने यही किया। विश्वास कीजिये कि मुझे पुत्र ही उत्पन्न हुआ।

अंत में यही कहूँगी कि मुझमें और मेरे पति में चिकित्सा बिना संतानोत्पत्ति संभव नहीं थी। किन्तु गुरुजी ने यह सहजता से कर दिया।

प्रत्येक भक्त को शत प्रतिशत आस्था के साथ शबद का मात्र एक शब्द या पंक्ति कई दिन, सप्ताह, मास या वर्षों तक एक ही कारण के लिए दोहराना पड़ सकता है; बार-बार बंद द्वार पर दस्तक देनी पड़ सकती है जिससे वह कभी तो खुले - और वह खुलता अवश्य है।

एक भक्त, जुलाई 2007

जुलाई 2007