जीवन के कर्ता

राज कुमार शर्मा, जुलाई 2007 English
मैं जलवायु टॉवर, सेक्टर 56 गुड़गाँव में रहता हूँ। यह मेरा और मेरे परिवार के सदस्यों का गुरुजी की शरण में आने के पश्चात्, उनके साथ अपने अनुभवों का वर्णन करने का एक लघु प्रयास है। इस अंतराल में मात्र गुरुजी के हाँ कहने भर से हमने अपना जीवन परिवर्तित होते हुए देखा है। मैं अब यह समझ गया हूँ कि गुरुजी स्वयं शिव हैं, और उनकी क्षमता से परे कुछ भी नहीं है। वह दया और प्रेम से भरपूर हैं, और अपनी शरण में आये हुए प्रत्येक व्यक्ति को आशीर्वाद देते हैं। वह ही हमारे अस्तित्व का कारण हैं और अपने गुरुजी, प्रभु और इस ब्रह्मांड के स्वामी की छत्रछाया में ही हम जीवन का आनंद ले रहे हैं।

प्रस्तावना

मेरी बेटी शुभा दो वर्ष की आयु से दमा और विसर्प की रोगी थी। उसको यह व्यथा झेलते हुए 17 वर्ष हो गये थे जब 2000 के आरम्भ में मेरे एक मित्र ने गुरुजी का आशीर्वाद लेने की बात करी। परन्तु वह हमें गुरुजी के पास नहीं ले गये। उस समय हम कालकाजी में रहते थे। अगस्त 2000 में एक दिन जब हम सुल्तानपुर में एम्पाएर एस्टेट के सामने से गुज़र रहे थे, मुझे अपने मित्र की बात याद आयी और मैंने अपनी पत्नी को यह बात बतायी। उसी समय मैंने निश्चय किया कि गुड़गाँव आने के बाद मैं गुरुजी के दर्शन के लिए अवश्य आऊँगा।

उस समय गुड़गाँव में एक मकान की किश्त देने में आ रही कठिनाईयों के कारण हम उसे बेचना चाह रहे थे। मेरे पिता उस समय हमारे गाजियाबाद वाले घर में रह रहे थे और उनसे धन की आशा नहीं थी।

अचानक, गुरुजी के दर्शन करने के निश्चय के 15 दिन उपरान्त ही मेरे पिता ने मेरे बड़े भाई को मेरे से गाजियाबाद वाला घर खरीदने को कहा। इससे मेरे पिता उस घर में रह सके और मुझे सितम्बर 2000 तक गुड़गाँव वाले घर के लिए धन प्राप्त हो गया। गुड़गाँव आकर रहने की सब समस्याएँ अब समाप्त हो गयीं।

16 सितम्बर 2000 को अचानक मेरी बेटी के त्वचा रोग में वृद्धि हो गयी और उसकी यह अवस्था चार मास तक बनी रही। फलस्वरूप वह अपनी अर्धवार्षिक परीक्षाएं नहीं दे पायी। होम्योपैथी औषधियों का सेवन करने से जनवरी 2001 तक उसकी त्वचा साफ हो गयी थी पर कुछ निशान शेष रह गये थे।

26 जनवरी 2001 को हम अपने गुड़गाँव वाले निवास में रहने के लिए आ गये। पता नहीं क्यों, मुझे लग रहा था कि हमारे गुड़गाँव आने और मेरी बेटी के स्वास्थ्य में सुधार का कारण गुरुजी ही हैं। अतः मैंने एम्पायर एस्टेट में गुरुजी के दर्शन करने का मन बना लिया।

बिना किसी कारण विशेष के इस कार्य के लिए मैंने 17 फरवरी 2001 की तिथि निश्चित करी। संयोग से वह शिवरात्रि का दिन था। एम्पाएर एस्टेट पहुँचने पर कुछ लोगों से दिशा निर्देश लेकर मैं भाटी खान क्षेत्र में स्थित बड़े मंदिर पहुँच गया। मुझे गुरुजी के दर्शन हुए। किसी कारणवश मुझे लगा कि मैं जीवन भर इन्हीं गुरुजी को ढूंढ़ता रहा था।

यद्यपि शुभा पढ़ाई में निपुण थी, रोग के कारण उसे उसी कक्षा में रोक लिया गया था। मेरी बेटी को लज्जित न होना पड़े, इस कारण मैंने उसका विद्यालय बदलने का निश्चय किया। मैंने गुरुजी से उसकी सहायता करने के लिए भी प्रार्थना करी। वह विज्ञान की छात्रा थी पर उसे गुड़गाँव के ही एक विद्यालय में कक्षा 11 में कामर्स में प्रवेश मिला।

अकस्मात् उसकी प्रधानाध्यापिका ने कहा कि यदि वह प्रवेश परीक्षा में 80 प्रतिशत से अधिक अंक लाये तो वह उसे कक्षा 12 में प्रवेश दे देंगी। उसे ग्रीष्मकाल के अवकाश में पढ़ कर उसके अंत में यह परीक्षा देनी थी। हमने गुरुजी से प्रार्थन करी और शुभा ने तैयारी करी। गुरुजी की दया से जब परिणाम आये तो उसे कक्षा 12 में प्रवेश मिल गया।

प्रधानाध्यापिका पर ऐसा करने का कोई बंधन नहीं था। हम उन्हें जानते तक नहीं थे और इसके लिए कोई माँग नहीं रखी। यह गुरुजी के बताने की प्रणाली थी कि वे सदा हमारे साथ हैं और यदि उनको समस्या से अवगत न भी कराया जाये तो भी उनकी कृपा सदा सब के ऊपर बनी हुई है।

नवम्बर 2001 में गुरुजी पंजाब चले गये। मैं हर सप्ताह लगातार एम्पाएर एस्टेट जाता रहा। मार्च 2002 में मुझे स्वप्न में गुरुजी दिखायी दिये और उन्होंने मुझे 14 अप्रैल 2002 को आने को कहा। मैंने यह बात अपनी पत्नी को बतायी और फिर एम्पाएर एस्टेट नहीं गया। 14 अप्रैल को एम्पाएर एस्टेट जाने पर गुरुजी के दर्शन हुए। पता लगा कि गुरुजी 13 अप्रैल की शाम को ही पंजाब से वापस आये थे और आने के बाद वह पहली संगत थी। संगत में उपस्थित अन्य अनुयायियों ने मुझे बताया कि गुरुजी के स्वप्न वास्तविक घटनाएँ होती है। गुरुजी में मेरा विश्वास और दृढ़ हो गया और अब हम स्वप्न में उनके पुनः आने की प्रतीक्षा करने लगे।

मुझे अगस्त 2003 से नई नौकरी ढूँढने में असफलता ही मिलती रही थी। साक्षात्कार के पश्चात् किसी न किसी कारणवश सफलता मेरे से दूर हो जाती थी। मेरी कंपनी भी मुझे पदोन्नति नहीं देना चाहती थी। अंततः सितम्बर 2005 में साहस बटोर कर मैंने गुरुजी को आने वाले साक्षात्कार के बारे में बताया और उनके अनुग्रह के लिए विनती करी। गुरुजी ने कहा, "तू पैसे दा की करेगा तू मेरे कोल आजा"। जब एक अन्य भक्त, श्री सिंगला ने उन्हें बताया कि मुझे दो बेटियों का विवाह और करना है तो मुस्करा कर बोले, "जा, ते फिर पैसे कमा ले"। इसके एक सप्ताह उपरान्त ही मुझे एक अंतराष्ट्रीय कंपनी से बुलावा आ गया और उन्होंने मुझे नौकरी दे दी। स्पष्ट है कि गुरुजी को बताये बिना ही उनको नयी नौकरी और मेरी अर्थ व्यवस्था का ज्ञान था।

पिता के रोग का निदान

मेरे पिता 79 वर्ष के हैं। जुलाई 2005 में पता लगा कि उन्हें प्रोस्टेट केंसर है। उनकी शल्य क्रिया हुई और वह चिकित्सा करवाते रहे। इसी अवधि में उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उनकी एंजियोप्लास्टी हुई। इन दोनों रोगों के कारण ऐसी आपात स्थिति उत्पन्न हो गयी जिस पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा था। तीन मास के उपरान्त उनके प्रोस्टेट ग्रंथि रोग की पुनरावृत्ति हो गयी। मैंने उनसे गुरुजी का आशीर्वाद लेने का आग्रह किया। उस समय तक उन्हें गुरुजी में विश्वास नहीं था और उनके दर्शन के लिए कभी नहीं आये थे। वह मान गये और 2005 के अंत में गुरुजी के दर्शन के लिए एम्पाएर एस्टेट आये।

हमने उनकी समस्याओं के बारे में कभी गुरुजी को नहीं बताया। तत्पश्चात् वह घर पर गुरुजी के चित्र के समक्ष 'ॐ नमः शिवाय' का जप करने लगे। शनैः शनैः उनकी सब औषधियाँ बंद हो गयीं और उनके सब परीक्षणों के परिणाम भी सामान्य आये। उनके स्वास्थ्य में आशा से कहीं अधिक सुधार आया। अब वह बड़े मंदिर के सब आयोजनों में जाते हैं।

कमांडर (सेवानिवृत) राज कुमार शर्मा, गुड़गाँव

जुलाई 2007