इक होर मुंडा लैना है?

पूनम सेठी, जुलाई 2007 English
मुझे अभी भी याद है जब हमें गुरुजी के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ - वह जून 1998 की घटना है। अपने पति के मामाजी से उनके बारे में सुनने के पश्चात् हमने काफी प्रतीक्षा करी थी। परन्तु मेरे पति श्रीनगर में कार्यरत थे और हम उनके पास नहीं जा सकते थे। इसका संयोग तब बना जब मेरे पति का वहां से तबादला हुआ।

मेरे पति के मामाजी के अनुभव स्मरणीय रहेंगे। गुरुजी से मिलने के पूर्व कई हृदय रोग विशेषज्ञों ने उनको बायपास करवाने की सलाह दी थी। गुरुजी से मिलने पर उन्होंने मामाजी को उनके चरण दबाने और अपनी समस्या बताने को कहा था। जब तक मामाजी ने अपनी समस्या उनको बतायी उन्होंने कहा कि उनके हृदय का बायपास हो गया है और उनको शल्य क्रिया करवाने की कोई आवश्यकता नहीं है। उन्हीं विशेषज्ञों द्वारा पुनः किये हुए परीक्षणों से पता लगा कि मामाजी के हृदय की अवस्था में आया हुआ सुधार शल्य क्रिया से भी संभव नहीं होता।

हम पिछले सात वर्षों से निःसंतान थे। यद्यपि इसकी चिंता हमें लगी रहती थी, समस्त प्रयासों के बाद भी हम विफल रहे थे और हमने इसकी आशा छोड़ दी थी। परन्तु जब हमने सत्संग और गुरुजी की दया से हुए चमत्कार सुने तो हम पुनः आशावान हुए कि कृपा हुई तो यह संभव हो जाएगा।

हम एम्पाएर एस्टेट स्थित गुरुजी के मंदिर में देर शाम को पहुँचे थे। उनके दर्शन भी हुए और हमने लंगर भी ग्रहण किया। गुरुजी ने हमें अपना परिचय देने के लिए कहा और फिर अपने जन्म दिवस पर एम्पाएर एस्टेट के निकट ही ‘दी रेंच’ नामक स्थान पर आने का निमंत्रण भी दिया। वहाँ जाकर उपस्थित अपार जन समूह को देख कर हम विस्मित रह गये। प्रत्येक को गुरुजी की कृपा के बारे में कुछ बताने के लिए था। इस आशा से कि हमें भी कभी गुरुजी के आशीर्वाद मिलेंगे हमने गुरुजी के पास जाने का नियम बना लिया। हम गुरुजी को अपनी समस्या के बारे में बताना चाहते थे किन्तु संगत के सदस्यों ने मना किया और कहा कि समय आने पर गुरुजी स्वयं ही उसका उल्लेख करेंगे।

एक दिन गुरुजी ने उनके पास आने का कारण पूछा तो मैंने उन्हें बताया कि मेरी कोई संतान नहीं है। उन्होंने कहा कि हमारी संतान होगी और हमारे आने के दिन निश्चित कर दिये। मैं गुरुजी के कथन से प्रसन्न थी किन्तु मुझे यह भी चिंता थी क्या गुरुजी को वास्तव में हमारी समस्या का ज्ञान है? क्या उन्हें पता है कि हमारे कितने उपचार हो चुके हैं और वह सब असफल रहे हैं? मैं सोच रही थी क्या उन्हें पता है कि मेरी गर्भाशय की नलियों में कुछ खराबी है और मेरे पति की शुक्राणुओं की संख्या (स्पर्म काउंट) कम है। अंततः चिकित्सकों ने बाह्य प्रत्यारोपण (ई वी ऍफ़) कर गर्भाशय बिठाने का सुझाव दिया था, किन्तु अधिक मूल्यवान होने के साथ ही उसके सफल होने की आशा भी कम थी।

हम गुरुजी के दर्शन उनके निश्चित किये दिनों को करते रहे। अन्य क्षेत्रें में निरंतर प्रगति होती रहीः मेरा कार्य स्थायी हो गया और मेरे पति को अधिशासी एम बी ए करने के लिए नामांकित किया गया।

परन्तु उपचार के क्षेत्र में सुधार नहीं था - चिकित्सकों को कोई आशा नहीं थी। उन्होंने कम मूल्यवान उपचार, गर्भाशय में वीर्यारोपण का सुझाव दिया था। इसके असफल होने पर वह बाह्य प्रत्यारोपण कर गर्भाशय में बिठाने के प्रयास करने का परामर्श दे रहे थे।

मई 2000 में मेरे पति का एम बी ए में चुने जाने का समाचार आ गया था और उन्हें एक वर्ष के लिए जाना था। इसका अर्थ था कि एक वर्ष के लिए चिकित्सा रुक जायेगी। मैंने चिकित्सकों के कहे अनुसार गर्भाशय में वीर्यारोपण करवाया पर परिणाम प्रतिकूल ही रहे। हमने गुरुजी के दर्शन कर पति के एम बी ए के बारे में बताया तो वह बोले, "फिर ते कल्याण हो गया"। मैं अत्यंत दुखी थी। यह कैसा कल्याण है? मेरे पति एक वर्ष के लिए बाहर रहेंगे, कोई उपचार संभव नहीं था और अगले दो वर्ष तक मैं संतानहीन रहूँगी। परन्तु गुरुजी ने यह सब देख लिया था और वह किया जिसकी हमें कल्पना भी नहीं थी...

हाँ, कुछ दिन के उपरान्त हुए गर्भाशय परीक्षण में पता लगा कि मैं गर्भवती थी! हम दोनों को विश्वास नहीं हो रहा था। हम दोनों हर्ष से विह्नल और कृतज्ञ थे। आंखों में आँसू भरे हम दोनों बहुत देर तक गुरुजी के चित्र को चूमते रहे। उन्होंने हमारी नियति को परिवर्तित कर दिया था। उस संध्या को हम गुरुजी को यह शुभ समाचार देने उनके दर्शन हेतु गये तो उन्होंने संकेत दिया कि मैं कुछ न बोलूँ। "मैनूं पता ए" उन्होंने कहा। "हाँ", मेरे मन में विचार आया, "केवल उन्हीं को पता होगा"।

पति की अनुपस्थिति होते हुए भी मेरा गर्भाकाल बिना किसी समस्या के पूरा हो गया। मैंने एक पुत्र को जन्म दिया। मैं उसे गुरुजी के पास, जिनके आशीर्वाद से वह उत्पन्न हुआ था, ले जाने को उत्सुक थी, किन्तु 40 दिन तक नवजात को बाहर न ले जाने की प्रथा ने मुझे रोक दिया।

40 दिन के पश्चात् हम उसे गुरुजी के पास ले गये। वह मुस्कुराये और बोले कि क्या मुझे एक और पुत्र चाहिए। मैं चुप रही। उसके बाद हर दर्शन पर वह यही प्रश्न दोहराते रहे। मैं उसे उनका परिहास समझती रही कि इतने छोटे शिशु के साथ उस पूरी प्रक्रिया को पुनः कैसे कर पायेंगे। एक दिन जब गुरुजी ने पुनः वह प्रश्न पूछा तो मेरे मुंह से निकल पड़ा, "जैसे आपकी इच्छा"। एक सप्ताह के पश्चात् मुझे पता लगा कि मैं फिर से गर्भवती हूँ - बिना किसी उपचार, औषधि या चिकित्सा प्रक्रिया के और उन्हीं दूषित गर्भाशय नलियों के साथ। यह केवल गुरुजी के दिव्य आशीष थे। मैंने फिर एक पुत्र को जन्म दिया।

दोनों बड़े हो रहे हैं :चंचल और सदा कोई शैतानी करते हुए। इतने बड़े नहीं हुए जो समझ पायें कि गुरुजी की कृपा से वह इस संसार में आये हैं। चिकित्सा की दृष्टि से हम संतान के योग्य नहीं थे। परन्तु फिर कोई है, जो मनुष्यों की आकांक्षाओं को पूर्ण कर सकता है, विधान बदल सकता है और उनमें सदा आशा की ज्योति जला कर रख सकता है। गुरुजी, आप धन्य हैं। आपने अपनी संगत में हमें आश्रय दिया और हमारे जीवन को ऐसे परिवर्तित किया जो किसी और से संभव नहीं था।

पूनम सेठी, दिल्ली

जुलाई 2007