भक्त सदा भक्त रहेगा

नूतन एवं अनिल बेरी, जुलाई 2007 English
गुरुजी की शरण प्राप्त होने से हम अत्यंत सौभाग्यशाली हैं। हमें उनके बारे में, नवम्बर 2005 में, मेरठ में अपने एक सम्बन्धी की बेटी के विवाह में उपस्थित एक अन्य सम्बन्धी से, पता लगा। पिंकी गुरुजी की अनुयायी थी और उसकी अभिलाषा थी कि हम गुरुजी के दर्शन करें। उस समय उसने हमें उनके कुछ संस्मरण भी सुनाये।

एक शुक्रवार को हम एम्पाएर एस्टेट से गुज़र रहे थे कि गुरुजी का ध्यान आया किन्तु उनके दर्शन किसी अन्य दिन करने के विचार से हम आगे निकल गये। आगे बढ़ते हुए हमने एम्पाएर एस्टेट के पूरे भवन को भी पार नहीं किया था कि हमारी कार रुक गयी। हम आश्चर्यचकित हो गये और गुरुजी के दर्शन कर उनके आशीर्वाद लेने का निश्चय कर लिया। इतना सोचते ही कार चल पड़ी। गुरुजी के स्थान पर हम सात बजे पहुँचे किन्तु हमें बताया गया कि वह आठ बजे खुलेगा। एक घंटे रुकने का सुन कर हमने किसी अन्य दिन आने का सोचा। उसी समय पिंकी आ गयी और उसने संगत पर आने का आग्रह किया। उस दिन से गुरुजी की संगत में लगातार आते रहे हैं। गुरुजी के दर्शन करने से पूर्व हम भटक रहे थे किन्तु उनकी दया से अब हम सही मार्ग पर अग्रसर हैं।

बेटी अमरीका गयी

हमारी पुत्री रक्षिता को अमरीका के एक विश्वविद्यालय में एम बी एस पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए 15 जनवरी 2006 तक पहुँचना था। किन्तु उसके दस्तावेजों में कुछ अड़चन थी जिनके लिए न्यायालय से मंजूरी आवश्यक थी, किन्तु उस समय न्यायालय शीतावकाश के लिए बंद थे। फिर गुरुजी की दया से एक न्यायाधीश आकर बैठे और मंजूरी दे दी। वह अमरीका जा सकी और 18 जनवरी को विश्वविद्यालय पहुँची। गुरुकपा से, तीन दिन की देरी को अनदेखा करते हुए विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने उसे प्रविष्ट कर लिया।

दिल्ली हवाई अड्डे पर उसका सामान अधिक था और उसे या तो कुछ सामान निकालने के लिए अथवा 180 डॉलर देने को कहा गया। हमने सामान निकाला, किन्तु अचानक रक्षिता को लगा कि गुरुजी ने पुनः सामान तोलने को कहा है। जब सामान दोबारा तोला गया तो वह अधिकतम वजन सीमा से कम निकला।

तीन मास के पश्चात् रक्षिता ने फोन पर बताया कि विश्वविद्यालय वाले उसे अगले सत्र में जाने की आज्ञा नहीं दे रहे हैं और संभवतः उसे भारत लौटना पड़ेगा। हमने उसे गुरुजी से विनती करने के लिए कहा। कुछ ही दिनों में उसने शुभ समाचार दिया कि उसे अगले सत्र में प्रवेश मिल गया है। गुरुजी का हार्दिक धन्यवाद।

पुत्र आस्तिक बना

हमारा पुत्र सुधांशु नास्तिक था। हम उसे तीन बार आग्रह कर के गुरुजी के पास ले गये परन्तु हर बार वह संगत में जाये बिना वापस चला गया। अब गुरुजी की कृपा से ही उसमें मनस् परिवर्तन हुआ है। जब भी वह छात्रवास से वापस आता है वह गुरुजी के पास जाने के लिए उत्सुक रहता है। वह सन्दर्भ जिसने उसमें यह परिवर्तन किया वह वर्णनीय है। वह अपने तीन मित्रों के साथ एक टैक्सी में कालका जा रहा था। वह कुछ ही दूर गये होंगे कि उनकी टैक्सी की सामने से आते हुए एक ट्रक से भीषण दुर्घटना हो गयी, जो लकड़ियों से लदा हुआ था। टैक्सी बुरी प्रकार से क्षतिग्रस्त हुई, ट्रक के सामने के पहिये टूट गये और वह पलट गया। चमत्कार था कि उसके पाँचों सवार सुरक्षित रहे। उनको मामूली चोटें ही आयीं थीं। सुधांशु के जीवन की रक्षा के लिए गुरुजी ने चार अन्य लोगों को और बचाया था।

सर्वविद्यमान स्वामी

गुरुजी छोटी से छोटी बातों का भी ध्यान रखते है। 2005 की शीत ऋतु में एक उपचार के लिए गुरुजी ने हमें प्रतिदिन यमुना पुल पर जाने का निर्देश दिया था। एक बार एक चढ़ाई पर हमारी कार रुक गयी। हमने उसको धक्का देकर चलाने का विफल प्रयास किया। उसके बाद गुरुजी से विनती करी। अचानक दो सिख युवक कहीं से आये और उन्होंने हमारी सहायता करी। उन्होंने कार को धक्का लगाया और उसके चलने के तुरन्त बाद,पता नहीं कहाँ, अदृश्य हो गये।

गुरुजी ने हमें स्वप्न में भी दर्शन दिये हैं। एक बार मेरे पति अनिल को प्रातःकाल सोते हुए स्वप्न आया कि गुरुजी ने उसे प्रसाद में मिठाई दी; किन्तु जब उन्होंने अपना हाथ खोला तो उसमें धन था।

गुरुजी सर्वज्ञाता और सर्व शक्तिमान हैं। उन्होंने हमारे परिवार और हमारे अतीत के बारे में बताया था। उदाहरणार्थ उन्होंने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में हुई अनिल की गंभीर शल्य चिकित्सा के बारे में बताया जिसके कारण वह आज भी जीवित हैं। गुरुजी ने अनेकों असाध्य रोगों का उपचार किया है। उन्होंने कैंसर और अन्य गंभीर रोगों की चिकित्सा करी है। वास्तव में गुरुजी का उपचार चिकित्सकों की विफलता के पश्चात् आरम्भ होता है।

गुरुजी की शरण में आने पर स्वाभिमान को नष्ट कर देना चाहिए। उनकी संगत में आये प्रत्येक व्यक्ति को उनके दर्शन के सम्पूर्ण फल प्राप्त करने के लिए धैर्य के साथ स्वच्छ मन, स्वच्छ हृदय और पूर्ण आस्था अनिवार्य हैं। गुरुजी का मुख्य उद्देश्य मानवता के कष्टों को दूर करना है। वह बिना किसी भेदभाव के सबका भला करते हैं और सर्व विद्यमान होते हुए भूत, वर्तमान और भविष्य जानते हैं। आनंद और मोक्ष की यह विभूति विद्वानों का अंतिम लक्ष्य हैं। सर्व विद्यमान प्रभु की कृपा से ही हमें लौकिक और अलौकिक अर्थ की प्राप्ति होती है। उन्हीं की दया से संगत के सदस्य अपनी समस्त आशाएं पूर्ण कर सकते हैं। गुरुजी की उपस्थिति से हम अत्यंत भाग्यशाली हैं। वह हमारे कष्ट और विपदाओं को दूर करते हैं। कहते हैं कि जिस भक्त पर आप कृपा करेंगे वह नष्ट नहीं हो सकता। ॐ नमः शिवाय, गुरुजी सदा सहाय।

नूतन एवं अनिल बेरी, गुडगाँव

जुलाई 2007