लेखापाल द्वारा गुरु आशीष की गणना

भारत भूषण चौधरी, जुलाई 2007 English
मैं गुरुजी के संपर्क में जनवरी 2000 में आया जब मेरा बाईस वर्षीय पुत्र एक बड़ी संस्था के साथ अधिकृत लेखापाल का अध्ययन कर रहा था। वह गत दो वर्ष से गम्भीर रूप पीठ से पीठ दर्द से पीड़ित था, पिछले दस मास से बिस्तर पर था और उसे हिलने डुलने और बैठने में अति वेदना होती थी। मैंने उसे दिल्ली, जालंधर, इंदौर, पलवल और सोहना के सब बड़े विशेषज्ञों और हकीमों को दिखा दिया था। इसके अतिरिक्त, ज्योतिषियों को भी दिखा चुका था; सब यही कहते थे कि उसे कोई समस्या नहीं है और उसका भविष्य अति उज्ज्वल है। फिर दिसंबर 1999 में मेरे बड़े भ्राता, श्री शिव कुमार चौधरी, एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने दिल्ली के पुलिस आयुक्त डा. कृष्ण कान्त पॉल के घर पर गुरुजी के दर्शन किये।

शीघ्र ही जनवरी 2000 के प्रथम सप्ताह में हमने एम्पायर एस्टेट में गुरुजी के दर्शन किये। उस दिन पहली बार, दस मास के उपरान्त मेरा पुत्र शरद, गुरुजी के चरणों में, ढाई घंटे तक, बिना किसी वेदना के ज़मीन पर बैठा। जब हम चलने को हुए तो गुरुजी ने अगले दिन आने को कहा। हमने वही किया। गुरुजी के प्रश्न करने पर मैंने उन्हें अपने पुत्र के पीठ दर्द के बारे में बताया। गुरुजी ने कहा कि उन्होंने उसे पहले ही आशीर्वाद दे दिया है और ताम्र लोटा लाने को कहा। गुरुजी ने उसे अभिमंत्रित किया। उसमें से एक मास तक जल पीने के पश्चात् मेरा पुत्र बिलकुल स्वस्थ हो गया। अब वह अधिकृत लेखापाल बन कर एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था के साथ कार्यरत है। गुरु कृपा से उसे डेढ़ वर्ष के लिए अमरीका भेजा गया है।

गुरुजी ने मेरी बेटी को स्वस्थ किया

गुरुजी की असीम कृपा से मेरी बेटी को एम बी ए पाठ्यक्रम में प्रवेश मिल गया था। उसकी कक्षाएँ 1 सितम्बर से प्रारम्भ होनी थी पर 1 अगस्त से उसे टाइफॉइड हो गया। मेरी बहन के पुत्र, डॉ. गिरीश बजाज, ने उसकी चिकित्सा आरम्भ की। वह उसे देखने के लिए प्रतिदिन प्रातः आठ बजे चिकित्सालय जाने से पूर्व घर आते थे। सब प्रयास करने पर भी ज्वर कम नहीं हो रहा था।

24 अगस्त को गुरुजी ने जब मेरी पत्नी के संगत में न आने के बारे में प्रश्न किया तो मैंने उन्हें बताया कि वह रोगसंतप्त बेटी की देखभाल में लगी हुई हैं। गुरुजी ने कहा कि यह उनको पहले क्यों नहीं बताया गया। उन्होंने अपने चरणों से एक फूलमाला उठा कर मुझे देकर कहा कि उसे एक बाल्टी जल में डाल कर उस जल से बेटी को स्नान करना है।

अगले दिन प्रातः मेरी बेटी ने वैसा ही किया और उसका तापमान एकदम गिर कर 98.5 डिग्री हो गया - पिछली रात्रि को 101 डिग्री था। जब आठ बजे डॉ. बजाज आये तो वह तापमान में गिरावट देख कर अचंभित रह गये। चार-पांच दिन में मेरी बेटी पूर्णतया स्वस्थ हो गयी और उसने विधिवत अपने विद्यालय जाना आरम्भ कर दिया। डॉ. बजाज इससे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने भी गुरुजी के दर्शन की अभिलाषा की और उनके भक्त हो गये।

वीसा - कोई कठिनाई नहीं

मेरा भांजा चिकित्सा विज्ञान के स्नातकोत्तर (एम डी) पाठ्यक्रम के लिए अमरीका जाना चाहता था। अमरीकी दूतावास भारतीय चिकित्सकों और चिकित्सक विद्यार्थियों को वीसा सरलता से नहीं देता था। मैंने गुरुजी से उस पर कृपा करने की विनती की जिससे वह वहाँ जाकर अपना स्वप्न साकार कर सके। गुरुजी ने मुझे झिड़की लगाई कि आये दिन मैं उनसे अनुग्रह करता रहता हूँ।

मैंने उत्तर दिया कि तीन व्यक्ति मन की आशा पूर्ण कर सकते हैं - सर्वप्रथम, ईश्वर, जिसे किसी ने नहीं देखा है; दूसरे, माता पिता, जो अब इस संसार में नहीं हैं और तीसरे, गुरुजी, जो अपने आशीर्वाद से सब कुछ कर सकते हैं; केवल वह ही मेरी पहुँच में हैं। गुरुजी ने "कल्याण हो गया" कह कर उत्तर दिया और मुझे अपने भांजे को वीसा के लिए अमरीकी दूतावास भेजने को कहा। हम चकित रह गये जब अमरीकी दूतावास में वीसा अधिकारी ने उससे अधिक प्रश्न नहीं पूछे। यद्यपि दूसरे आवेदकों को 45-50 मिनट तक प्रश्न करने के उपरान्त भी वीसा मना कर दिया जाता था, उसे सहजता से वीसा मिल गया। आज मेरा भांजा अमरीका में सुखी दाम्पत्य जीवन व्यतीत कर रहा है।

लंगर के उपरान्त दावत

एक वरिष्ट आयकर अधिकारी मेरे साथ गुरुजी के दर्शन के लिए आया करते थे। एक शुक्रवार को गुरुजी ने हमें अगले दिन आने को कहा। उस शनिवार की संध्या को हमने केवल पुरुषों के लिए मदिरा और भोज का आयोजन किया था। उस दिन दोपहर को मैं सोच रहा था कि गुरुजी ने हमें बुलाकर शाम का कार्यक्रम नष्ट कर दिया था। उस दिन रात्रि को दस बजे, लंगर समाप्त होने के पश्चात्, गुरुजी ने हमें कुछ अन्य अनुयायियों के साथ रुकने के लिए कहा।

आधे घंटे बाद गुरुजी ने अपने एक भक्त, एक वरिष्ठ सीमा शुल्क अधिकारी, के घर चलने के लिए कहा जो अपनी पदोन्नति होने पर दावत कर रहे थे। जब हम उनके घर पहुँचे तो हमें पेय प्रस्तुत किये गये। मैं और मेरे मित्र गुरुजी की उपस्थिति में यह लेने में हिचकिचा रहे थे; तब गुरुजी ने मेरी आँखों में आँखें डाल कर कहा कि दोपहर को तो मैं शाम का कार्यक्रम नष्ट होने की बात कर रहा था; अब यहाँ पर मैं प्रसन्नचित्त होकर जितना चाहूँ पी सकता हूँ। मेरी आँखों में आँसू आ गये। मैं गुरुजी के चरणों में गिर पड़ा और मात्र इतना ही कह पाया कि आप अन्तर्यामी हो।

मेरे चालक को गुरुजी के दर्शन हुए

मेरा वाहन चालक, सुरेश, धार्मिक प्रवृत्ति का है। एक दिन मैंने उसे संगत में अन्दर आकर गुरुजी के दर्शन करने को कहा। पर वह समस्त भद्रजनों की उपस्थिति के कारण झिझक रहा था। संगत के उपरान्त मैं किसी को विदा करने अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा गया था। दो बजे के आस-पास जब मेरी गाड़ी मुख्य मार्ग पर मुड़ रही थी, तो मैंने गुरुजी को वहाँ पर कुछ अनुयायियों के साथ देखा। मैंने सुरेश को रुकने को कहा और हम दोनों ने उतर कर गुरुजी के चरण स्पर्श किये। गुरुजी मुस्कुरा कर बोले कि मेरी इच्छा अपने वाहन चालक को उनके दर्शन कराने की थी इसलिए वह आये थे। मेरे पास उनको धन्यवाद करने के लिए शब्द नहीं थे।

शिव अवतार

मेरे छोटे भाई की पत्नी के गले में कुछ असाधारण सूजन थी और हमें भय था कि वह केंसर न हो। गुरुजी को बताने पर उन्होंने कहा कि हम चिंता ना करें और उसकी चिकित्सा अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में करवायें। मेरे एक सम्बन्धी, जो शल्य चिकित्सक हैं, ने वहाँ पर डॉ. शर्मा से संपर्क करने को कहा। डॉ. शर्मा गुरुजी के अनुयायी हैं और उनके कृपा पात्र हैं। उस दिन संध्या को जब हम गुरुजी के पास गये तो उन्होंने कहा कि डॉ. शर्मा उसकी शल्य चिकित्सा करेंगे। गुरुजी के कथनानुसार डॉ. शर्मा ने ही उसकी शल्य क्रिया की और अब वह बिलकुल स्वस्थ है।

मुझे पूर्ण विश्वास है कि गुरुजी शिव के अवतार हैं। वह सब कुछ जानते हैं और समय आने पर बिना पूछे ही अपना आशीर्वाद दे देते हैं। उनकी शरण में आये प्रत्येक अनुयायी को सब प्राप्त हो जाता है। गुरुजी के लिए जाति और धर्म अर्थहीन हैं। उनकी दृष्टि में इस संसार के सब प्राणी एक समान हैं। शिव ने गुरुजी को इस संसार में हम सबके जीवन की यातनाओं और कष्टों से मुक्त करने के लिए भेजा है।

गुरुजी ने सबको ॐ नमः शिवाय, शिवजी सदा सहाय का मन्त्र दिया है। मैं उसमें ॐ नमः शिवाय, गुरुजी सदा सहाय, ॐ शांति और जय गुरुदेव जोड़ कर उसका संशोधन करना चाहूँगा।

भारत भूषण चौधरी, दिल्ली

जुलाई 2007